राजमाता भाषा के दरबार में आज हिंदी कुछ सवाल लेकर आई है,
वो पूछती है,
मेरे अंशो से बनी प्रेमचंद की पुस्तक,
क्या वो पुस्तकालय में सिर्फ पड़ी है ,
या वो तुमने कभी वक़्त निकालकर सच में पढ़ी है ?
वो प्यार के चंद लफ्ज़,
जिससे इस देश के शायरों ने सिर्फ मुझमें बुना है,
कभी सोचा है,
की कुछ तो उन्होंने भी सोचा होगा ,
जब ‘तेरे घर के सामने घर ‘ बनाने के लिए उन्होंने ‘GH’ नहीं पर ‘घ’ को चुना है ।
तुम्हें हर किताब ने ये पढ़ाया की अंग्रेज़ी को भारत में गोरो ने बढ़ाया ,
मेरे जीवन जा पहला सवेरा कब आया ,
ये कितनी किताबो ने तुम्हें बताया?
अंग्रेज़ी में बात करने पर तो हम सबको अभिमान है,
जो कोई दोस्त चंद शब्द हिंदी में भेज दे,
तो बड़ी अकड़ से कहते हैं,
अंग्रेज़ी में लिख यार,
हिंदी का अब कहाँ ज्ञान है?
जनतंत्र के चौथे स्तंभ की डगमगाती चाल है,
मनोरंजन का क्षेत्र पूर्ण हिंदी है,
पर कहाँ है हिंदी में बेखौफ पत्रकारिता,
ये बड़ा सवाल है,
घर में बस बड़े बूढ़े पड़ते हिंदी का अखबार हैं,
पापा कहते बच्चों को,
अंग्रेज़ी की vocabulary बड़ा बेटा,
जो आज के समाज में औदा न बढ़ाये,
ऐसी भाषा पढ़ना बेकार है।
आज इस भरे दरबार में राजमाता मैं आपसे पूछती हूँ,
आज मात्र भाषा को पीछे छोड़ रहे,
काल मात्र भूमि को पीछे छोड़ देंगे,
कुछ कीजिये,
ये ‘आज के लोग’
कल अपनी हर एक जड़ से नाता तोड़ देंगे।
– Paranjaya Mehra